दुःख नही चाहिये तो सुख की इच्छा भी छोड़ो

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दुःख नही चाहिये तो सुख की इच्छा भी छोड़ो

लोग सुख महसूस कम करते हैं और दुःख ज्यादा महसूस करते हैं। सुख घर में सौ तरह का होगा और एक
दुःख आ जाये तो सारे सुःखों पर पानी फेर देता है। जैसे किसी पार्टी में आपके रुप की लोगों ने प्रशंसा कर दीऔर किसी एक ने बुराई कर दी तो आप 99 की प्रशंसा भूलकर एक की बुराई के प्रति चिंतित हो जायेंगे। सुख भूलना और दुःख को याद रखना, मानव का स्वभाव सा बन
गया है।
संसार में दुख बढ़ने का कारण भी यही है। दुख हम जल्दी ग्रहण कर लेते हैं। आज सारी दुनियाँ दुखी है जबकि संसार में सुख ज्यादा है और दुख कम है। पर हमारा सारा ध्यान दुख की ओर अधिक होता है। चार फूलों की खुशबू हम महसूस नहीं करते और एक काँटे की चुभन हमें महसूस
होती है।आज मृत्युंजय विधान कर रहे हैं, इसमें कुछ भक्तिवश कर रहे हैं कुछ दुःख अभिव्यक्तिवश कर रहें हैं। दुःख कष्ट संकट जीवन में आते ही रहते हैं। वैसे देखा जाये तो कष्ट जीवन को निखारता है। जैसे अग्नि में तपकर सोना निखरजाता है वैसे ही इंसान दुख की कसौटी में तपकर कुन्दन
बन जाता है। बिन तपे संसार की किसी वस्तु का अस्तित्व नही है।


सीता को अग्नि परीक्षा देनी पड़ी, राम को चौदह वर्ष वनवास में रहे, अंजना को वन वन भटकना पड़ा, श्रीपाल को शूली पर लटकाया गया। जितने भी महापुरुष और सतियाँ हुई हैं सभी कष्ट की कसौटी पर कसे गये तब आज वे हमारे मानस पटल पर अंकित हैं।

ग्रहण सूर्य चन्द्र पर लगता, है तारों पर नहीं।
संकट महापुरुषों पर आते हैं सामान्य पर नही ।।


यदि तुम्हें सुख चाहिये तो दुःख भी स्वीकार करना होगा। यदि दुःख नही चाहिये तो सुख पाने की इच्छा छोड़कर समता भाव में रहो। सुख और दुःख एक तराजू केदो पलड़े हैं, एक के साथ दूसरा चलता है। जैसे धू साथ छाया, ऊपर-नीवे, आगे-पीछे, दाँये-बाँये चित्त पट वैसे ही सुख-दुःख दोनों साथ-साथ ही चलते हैं।


संसार में मित्रों की परीक्षा दुःख में ही होती है सुख में नही। सुख में सब साथी हैं, दुःख में सब भाग जाते हैं। दुःख हमे अच्छे, बुरे, मित्र और शत्रु की पहचान करा देता है। दुःख आदमी को वास्तविक जीवन जीना सखाता है। सुख में आदमी मदहोश होता है और दुःख में आदमी होश में रहता है। जो हमें होश में लाये वह हमारा परम मित्र है।
कवि रवीन्द्र की ये लाईनें-


दुःख में धबराओ नाही मेरे साथी, ये जीवन का श्रंगार है।
सुख में व्यसन प्रमाद भरे, दुःख पापों से करता खबरदार हैं ।।


दुःख आने पर परमात्मा की पूजा अच्छी लगती है,माला जाप में मन लगता है और भगवान के प्रति श्रद्धा पैदा
करने वाला दुःख ही है। अतः जो हमें भगवान से जोड़े वह अच्छा ही है। कहा भी है-


दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें ना कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय ।।

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