आज के इस लेख के माध्यम से आप लोग किसान की आत्मकथा के बारे मे जानकारी प्राप्त करेगे |अक्सर स्कूलों और कॉलेजों मे किसान की आत्मकथा पर निबंध लिखने के लिए आता हैं |यदि इस निबंध को आप पढ़ लेगे तो निश्चित ही आप आसानी से निबंध लिख सकेगे |किसान की आत्मकथा इस निबंध की शुरुवात नीचे से की गई हैं |
Table of Contents
जन्म , बचपन, शिक्षा, दीक्षा(किसान की आत्मकथा)
मैं एक भारतीय किसान हू। मेरा जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले में एक छोटे से गांव में हुआ था। मेरे दादा और परदादा भी पारंपरिक रूप से किसान थे। मेरे माता-पिता धार्मिक विचारों पर ज्यादा विश्वास रखते थे। हम कुल तीन भाई थे। सभी भाइयों में मै सबसे छोटा था। सभी भाइयों में छोटा होने के कारण मुझे माता-पिता का स्नेह सबसे ज्यादा मिला।
मुझे स्कूल जाना बहुत ही पसंद था। स्कूल में लिए जाने वाले खेल कूद के कार्यक्रम में हिस्सा लिया करता था। अक्सर हर स्पर्धा में मैं प्रथम पुरस्कार प्राप्त करता था। मेरी पढ़ाई दसवीं क्लास तक अच्छी तरह से चली। दसवीं क्लास में मैंने प्रथम श्रेणी भी प्राप्त किया।
कृषि कार्य में लगना((किसान की आत्मकथा)
धीरे-धीरे मेरे माता-पिता बूढ़े होते चले गए। मेरे दोनों बड़े भाई घर के किसी भी काम में अच्छी तरह से भाग नहीं लेते थे। मेरे दोनों भाई दिन भर गांव में घूमते रहते थे और खाना खाने के समय घर पर आते थे। दिन पर दिन घर की हालत बिगड़ती गई।कई बार मैंने नौकरी की तलाश की परंतु अंत में निराशा ही मिली। अंततः मुझे पूरा घर संभालने के लिए खेती बाड़ी का कार्य करना पड़ा।
कृषि कार्य में होने वाली परेशानियां
जब मैने खेती बाड़ी का काम संभाला तो शुरुआत मे मुझे काफी परेशानियां उठानी पड़ी।आज की कृषि में बहुत पूजी लगानी पड़ती है। रासायनिक उर्वरकों ,सुधारित बीजों, कीटनाशकों आदि का भरपूर प्रयोग करना पड़ता है। आज के समय यह सारी सामग्रियां बहुत ही महंगी मिलती है। इतनी सारी सुविधाएं प्रदान करने के बाद प्राकृतिक आपदाओं से भी जूझना पड़ता है। कभी-कभी जरा भी बारिश नहीं होती है। कहने का तात्पर्य की सूखा पड़ जाता है।
कभी-कभी बाढ़ आने से पूरी फसल चौपट हो जाती है। तो कभी कभी घरेलू जानवर या जंगली जानवर ही फसल को तबाह कर देते हैं। इतना सब करने के बाद अगर कुछ फसल की पैदावार हुई तो भी उसमें से कुछ खाने के लिए रखना पड़ता है तो कुछ बेचने के लिए रखना पड़ता है जिसका बाजार में उचित दाम भी नहीं मिलता है। इस प्रकार कृषि से जीविका और परिवार चलाना बहुत ही कठिन और दुष्कर हो जाता है।
प्रशासन से उचित सहयोग न मिलना
वैसे तो हमारी सरकार समय-समय पर कई सारी कल्याणकारी योजनाओं को शुरू करने की घोषणा करती है। योजनाएं शुरू भी हो जाती है। परंतु हम जैसे छोटे मोटे किसानों को इस योजना का लाभ तक नहीं मिल पाता है। किसानों की सुविधा के लिए सरकार जो भी व्यवस्था करती है नौकरशाही के लाल फीते के चक्कर में पड़ कर व्यर्थ हो जाती है।
कभी-कभी फसल का उत्पादन अच्छा ना होने पर खाने पीने के लिए सरकार गेहूं तथा अनाज को मुहैया कराने की घोषणा करती है। परंतु यह सुविधा हम जैसे गरीब किसान के पास नहीं पहुंच पाती है। सरकार द्वारा भेजी गई इस सुविधा का फायदा बीच में ही कोई उठा लेता है। इसीलिए तो कभी-कभी प्रशासन के प्रति मन में अनाप-शनाप विचार भी पैदा हो जाते हैं कि जिन को चुनकर हमने इस गद्दी पर बिठाया आज वे हमारी तरफ ध्यान तक नहीं दे पा रहे हैं।
मेरे मन के विचार
इन सभी कठिनाइयों से परेशान होकर कभी-कभी मन में ऐसा विचार आता है कि शहर जाकर नौकरी करूं और पैसे कमाऊ। परंतु जैसे ही मैं अपने परिवार की तरफ देखता हूं तो ऐसे विचार को मन से निकाल फेंकता हूं। आप लोगों को एक बात तो बताना भूल ही गया कि जैसे ही मैंने दसवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की, मेरा विवाह कर दिया गया था। ईश्वर की कृपा से आज मैं दो पुत्रों का बाप हूं। मेरी हमेशा यही इच्छा बनी रहती है कि अपने पुत्र को खूब पढ़ाऊ लिखाऊ ताकि उनका भविष्य उज्जवल हो । उन्हें मेरी तरह जीवन भर कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े।

सच कहूं तो किसान का जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है। आजादी के इतने सालों बाद भी है बिजली ,पानी ,इलाज या शिक्षा की पर्याप्त सुविधा नहीं है। केवल त्यौहार और उत्सव हमारे जीवन में रस भर देते है। होली ,दिवाली रक्षाबंधन जैसे त्योहारों और मेलों से हमें जीने का नया उत्साह मिलता है।
सरकार से मेरा नम्र आवेदन
भारतीय कृषि व्यवस्था के सुधार के लिए भला मै क्या सुझाव दे सकता हूं? फिर भी मेरा निवेदन है कि गांव में बढ़ती बेकरी पर अंकुश लगाने के लिए वहां लघु तथा कुटीर उद्योगों को प्रारंभ और विकसित करना चाहिए। गांव में अस्पताल, बिजली ,पेयजल आदि की सुविधाएं भी होनी चाहिए ताकि गांव की जनता के जीवन में भी कुछ सुख आ सके। कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार है और हमारे देश में कृषकों का बहुत महत्व है। अतः सरकार को किसानों की भलाई की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि किसानों और गांव की खुशहाली से ही हमारे देश की प्रगति और विकास संभव है।
आत्मसंतोष
क्या बताऊं अब तो मै बूढ़ा हो चुका हूं ।मेरी उम्र भी ढल चुकी है। अब तो खेती बारी का सभी काम मेरे दोनों बेटे ही संभालते हैं। इस वर्ष मैं गांव का सरपंच चुना गया। मेरा यही उद्देश्य है कि गांव से कई तरह की बुराइयां जैसे नशाखोरी अशिक्षा आदि को मिटा सकूं। गांव की खुशहाली में मै अपने को धन्य समझूंगा।
अंतिम विचार
हमारा भारत देश एक कृषिप्रधान देश हैं | मैं यही कहूंगा कि यदि देश का किसान वर्ग प्रगति करता है तो निश्चित ही देश की प्रगति संभव है।
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